मित्रों! आभार वरिष्ठ कवि, आलोचक और संपादक श्रीप्रकाश मिश्र जी का! उन्होंने हमारे आग्रह को विनम्रता से स्वीकार करते हुए शीघ्र प्रकाशित होनेवाले संग्रह से कुछ कविताएं उदाहरण के पाठकों के लिए दी है। हिन्दी साहित्य में श्रीप्रकाश मिश्र का नाम बहुत ही सम्मान से लिया जाता है। पिछले लगभग चार दशकों के हिन्दी साहित्य में आए उतार-चढाव, अभिव्यक्ति के तौर-तरीकों के वे साक्षी व सहभागी रहे हैं। साहित्य में श्रीप्रकाश मिश्र का योगदान कई तरह से है। उन्नयन लघु पत्रिका के सम्पादक के रूप में एक पूरी कवि पीढ़ी को आगे लाने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है। ये कवि अपने प्रारंम्भिक समय में इसी पत्रिका में महत्वपूर्ण तरीके से प्रकाशित हुए। इन कवियों में देवीप्रसाद मिश्र, बद्रीनारायण, हरीशचन्द्र पाण्डेय, अष्टभुजा शुक्ल, विश्वरंजन, हीरालाल, जितेन्द्र श्रीवास्तव, निशांत, रघुवंश मणि जैसे महत्वपूर्ण कवि रहे हैं। उन्नयन विभिन्न भारतीय भाषाओं की कविताओं पर भी अपने अंक केन्द्रित करती रही है।
मिश्र जी की कविता मनुष्य और मनुष्यता के यथार्थ के साथ-साथ प्रकृति से साक्षात संवाद की कविता है। अपने आसपास की चीजें, आम आदमी, जीवन शैली और प्रकृति में विशेषकर पानी उनकी कविताओं का मुखर स्वर है। इसके अलावा उन्होंने अलग-अलग शहरों की प्रकृति और उनकी पौराणिक, ऎतिहासिकता को अपने अनुभव की अनुभूति को भी जीवंत और चिंतनपरक काव्याभिव्यक्ति दी हैं । उनकी कविता हर विषय-वस्तु की बहुत ही सूक्ष्मता से पड़ताल है और शायद यही कारण है कि उन्हें एक ही विषय-वस्तु में अनुभूति के कई-कई आयाम दिखाई देते हैं। उन्होंने एक ही विषय-वस्तु पर कविताओं की श्रृंखलाएं लिखी है। प्रकृति में विशेष रूप से पानी उनकी अधिकांश कविताओं के केंद्रीय भाव में अनेकानेक आयामों के साथ रचा-बसा प्रतीत होता है अद्भुत बिम्बों और प्रतीकों के साथ। ’पानी’ पर लिखी उनकी काव्य श्रृंखला भी बहुत चर्चित रही है। ’नदी’ ’कुछ संवेदन चित्र’ और ’दिल्ली’ काव्य श्रृंखलाओं में से कुछ चयनित कविताएं आपके सामने हैं...
मिश्र जी की कविता मनुष्य और मनुष्यता के यथार्थ के साथ-साथ प्रकृति से साक्षात संवाद की कविता है। अपने आसपास की चीजें, आम आदमी, जीवन शैली और प्रकृति में विशेषकर पानी उनकी कविताओं का मुखर स्वर है। इसके अलावा उन्होंने अलग-अलग शहरों की प्रकृति और उनकी पौराणिक, ऎतिहासिकता को अपने अनुभव की अनुभूति को भी जीवंत और चिंतनपरक काव्याभिव्यक्ति दी हैं । उनकी कविता हर विषय-वस्तु की बहुत ही सूक्ष्मता से पड़ताल है और शायद यही कारण है कि उन्हें एक ही विषय-वस्तु में अनुभूति के कई-कई आयाम दिखाई देते हैं। उन्होंने एक ही विषय-वस्तु पर कविताओं की श्रृंखलाएं लिखी है। प्रकृति में विशेष रूप से पानी उनकी अधिकांश कविताओं के केंद्रीय भाव में अनेकानेक आयामों के साथ रचा-बसा प्रतीत होता है अद्भुत बिम्बों और प्रतीकों के साथ। ’पानी’ पर लिखी उनकी काव्य श्रृंखला भी बहुत चर्चित रही है। ’नदी’ ’कुछ संवेदन चित्र’ और ’दिल्ली’ काव्य श्रृंखलाओं में से कुछ चयनित कविताएं आपके सामने हैं...
जन्म 1 सितंबर 1950 ग्राम – जड़हा, जिला कुशीनगर (उ.प्र.) प्रकाशन- कविता संग्रह- मौन पर शब्द(1987) शब्द के बारीक तारों ने(2009) जैसे होना एक खतरनाक संकेत(शीघ्र प्रकाश्य) उपन्यास : जहाँ बाँस फूलते हैं (मीज़ो जाति की पृष्ठभूमि पर), रूपतिल्ली की कथा (खासी जनजाति की पृष्ठभूमि पर)। शीघ्र प्रकाश्य: जो भुला दिए गये (पृष्ठभूमि- चौरी-चौरा कांड), सर्पमणि की चूर्ण चमक (पृष्ठभूमि- 1857 की क्रांति) आलोचना : यह जो आ रहा है हरा, यूरोप के आधुनिक कवि, युग की नब्ज़ अनुवाद : आँखों का आलोक (शुभ्रा मुखर्जी की मूल बांग्ला कृति से)
सम्मान : साहित्यिक पत्रिका ’उन्नयन’ का 20 से अधिक वर्षों से, आलोचना के लिए रामविलास शर्मा आलोचना सम्मान का प्रायोजन
संपर्क | : 406 त्रिवेणी रोड, कीडगंज, इलाहाबाद |
फोन | : 9451142647 Jhizdk’k feJ dh dfork,a नदी 1 घना कुहरा दूर पर्वत लाल सूरज से बरसता थलतेज घस्मर पीला थक्का नदी की पेटी से घना हो उलझ रहा है पुल की रेलिंग से ***** 2 सोते को भ्रम हो गया कि वह नदी है बह चला रेगिस्तान को उर्वर करने बिला गया ***** 3 हजारों मील की कड़ी जमीन को काटकर बहती नदी न पहाड़ से डरी न जंगल से न अंधेरे से मैदान में आयी तो आदमी मिला उसने उसकी वेणी को बांधा नदी ने सोचा: श्रृंगार किया है फ़िर उसका हाथ बांधा नदी ने सोचा: कोई तो है जो उसे अनुशासित करता है फ़िर उसने उसका पांव बांधा नदी झील की श्रृंखला में तब्दील होने लगी उसका पानी सूख गया नदी की सोच क्षमता गायब हो गयी मैदान में आकर नदी आदमी से डर गयी और मर गयी ***** 4 यह मुहाने की बात है नदी यहां से खत्म हो जाएगी खतम हो जाएगी तो खतम हो जाएंगे डेल्टा के वन और मुनि का डेरा सुनाई नहीं देगी शेर की दहाड़ और वनगाय की पागुर दिखाई नहीं देंगे मेरे पदचिन्ह और घास की नोक पर जड़ा बीच का रंग सो नहीं पाएंगी घिसकर चिकनी हो गयी कंकड़ियों के बिस्तर पर नन्हीं चंचल मछलियां बेदार के पत्ते की खुश्बू बेकार ही बह जाएगी एक बूंद उछलेगी और जल चादर को हिलाती हवा में गुम हो जाएगी भोर की गड़ी अलसी के फ़ूल के रंग की जलदस्यु किरण कांपेगी नहीं कांपेंगे अद्दश्य गलफ़रों से उठते बुलबुले यह मुहाने की बात है नदी यहां से खतम हो जाएगी खतम हो जाएगी तो खतम हो जाएंगी तारों की परछाइयां जिसे वे समुद्र को नहीं दे सकते पर खतम नहीं होगी नदी की बात ***** कुछ संवेदन चित्र 1 पानी के पहाड़ देखे टकराते हुए पानी के पहाड़ों से मिलकर बनाते एक और पानी का पहाड़ टकराता मिट्टी के कि पत्थर के पहाड़ से अद्भुत है घिसकर पत्थर को रेतकरता पानी ***** 2 पानी को तोड़कर घुसता है पानी पानी में पानी-पानी करता कोई नीला भैंसा पानी के धूह को अंखड़ उछाल फ़ेंकता है अठोस शक्ल बदलती सींग से ***** 3 पानी के पहाड़ में सर्र-सर्र घुसती रश्मि बर्छियां नि:शब्द घुसती विशाल अणुराशि ठंडी चमक का महत्तर विस्फ़ोट झक-झक धूप की नाचती बिड़ाल ***** 4 समुद्र एक शब्द आकाश के माप का जिसे छोड़ते जा रहे हम अपने पीछे.. ***** 5 तुम्हारे भीतर एक समुद्र जमा है मैं उठाता हूं एक बर्फ़ काटने की कुल्हाड़ी और करता हूं प्रहार पिघलने लगता है एक समुद्र -वही मेरी कविता है ***** दिल्ली 1 दिल्ली से चलती है गाड़ी जयपुर तक एक्सप्रेस रहती है रेवाड़ी तक तो बिल्कुल मेल अजमेर आते-आते पैसेंजर बन जाती है दिल्ली से चलती है त्वरित सेवा वाली चिठ्ठी राजधानियों में रातोंरात पहुंच जाती है इलाहाबाद, इंदौर, अकोला एक-दो दिन बाद पर पडरौना कभी नहीं पहुंचती दिल्ली से चलता है एक गरजता हुआ आदमी मेरठ, सोनीपत, चलो ग्वालियर तक दिखायी देता है फिर गायब हो जाता है कि जैसे कोई आदमी था..... नहीं यही हाल चीनी, बादल, खानदानी कुत्तों और अब अवधारणाओं का है कि जो कुछ भी चलता है दिल्ली से गंतव्य तक पहुंचते से पहले ही गायब हो जाता है..... ***** 2 सुरेंद्र सिंह को कुछ करना होता है तो उठाते हैं अपना कंबल झाड़ते हैं चटाकी और चल देते हैं दिल्ली मेधा पाटकर लेती है अंगड़ाई भूख हड़ताल तोड़ने के बाद और भरूच से कटाती है टिकट दिल्ली के लिए देवी प्रसाद लिखते हैं एक कविता बांचते हैं स्थानीय लेखक संघ की बैठक में और अगली डाक से भेज देते हैं दिल्ली मूल्यांकन के लिए का.मु.क. पिल्लै पकड़ते हैं एक लुप्त होती प्रजाति की चिड़िया और चुपचाप भेज देते हैं दिल्ली शोध या सजावट के लिए वसीम खान उत्तर में खड़ा करते हैं सहकारिता का जन आंदोलन चल देते हैं दिल्ली सनद, अनुदान प्राप्त करने के लिए साड़लियाना साइलो पूरब में संगठित करते हैं विद्रोह अपने इलाके के पूरे समर्थन के साथ किंतु प्रगतिवार्ता करने आ जाते हैं दिल्ली हमारे देश में जो भी उपजता है नया होता है महत्त्वपूर्ण दिखता है बेहतर कुछ ठोस कुछ विशेष पहुंच जाता है दिल्ली दिल्ली जाकर क्या हो जाता है पता ही नहीं चलता ***** 2 हमने पांव बनाया हाथ बनाया धड़ बनाया बिठा दिया एक धड़कता हुआ दिल हमने गर्दन बनाई सिर बनाया बालों का गुच्छा बनाया भर दिया एक काम करता हुआ दिमाग मने नाक बनाई कान बनाया चेहरा बनाया उकेर दिया उस पर सौ-सौ भाव बस नहीं बना पाए तो आंख तो सब बेकार आंख दिल्ली में बनती है वह भी सिर्फ एक कारखाने में हमें इंतजार है कि कब मिलेगी आंख हमारे गुड्डे को बिक नहीं पाएगा हमारा गुड्डा बिना दिल्ली की आंख के ***** |
10 comments:
नवनीत जी नमस्कार, आपको भी व मिश्र जी को भी जो इन कविताओं को हम पढ पाये धन्यवाद्।
नदी खत्म होगी तो खत्म हो जायेंगे हम भी उसे बाँधने की कोशिश मॆं / पर पत्थर को घिस कर रेत करते पानी की ताकत अद्भुत है/ यह सतत जिजीविषा है/ सब कुछ दिल्ली से तय होता है/ वृहत्तर आयामों को उदघाटित करती कविताएँ!
नदी के बहाने बहुत कुछ कह दिया है जो बार-बार कहा जाना चाहिए. दिल्ली प्रसंग तो व्यंग्य का वज़नदार पिटारा ही बन गया हो, जैसे. बधाई, श्रीप्रकाश मिश्र को, और आभार नवनीत का. अच्छी रचनाएं पढ़ने को मिलीं.
श्रीमान नमस्कार,
आप का बयाने अन्दाज अपने आप मे अनूठा है मुझे काफी पसन्द आया । सरस्वती आप पर इसी तरह महरबान रहे।
सादर।
दीपक पारीक ।। दीपरंज।। deepakpareekshp.blogspot.in
बहुत सुन्दर और अद्भुत कवितायेँ ! मिश्र जी को बधाई और आपका आभार !
वही करती हैं ये कविताएँ जो इन्हे करना चाहिये - बहुत गहरे तक कचोटती है
नदी के बहाने कई चीज़ें उकेर दी है तो दिल्ली पहुँचना तो दिल्ली पहुँचना है ही।
बेहतरीन कविताएँ
कविताओ में शब्द अतिरिक्त नहीं है , यही श्री प्रकाश जी की कविताओं की खूबी है , बधाई श्री प्रकाश जी
बेहतरीन कविताएं
सुंदर कविताएं ।
इनका उपन्यास सर्पमणि की चूर्ण चमक का प्रकाशन खान से हुआ है? किसी को पता हो तो जरूर बताएं
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