मित्रो ! आज उदाहरण में अपनी कविताओं के माध्यम से रु-ब-रू हो रहे हैं वरिष्ठ युवा कवि नीरज दइया । नीरज दइया की पहचान एक राजस्थानी कवि, आलोचक, संपादक और बाल-साहित्यकार के रूप में अब तक रही है, राजस्थानी भाषा में उनकी कविताएं अपनी एक अलग पहचान-स्थान रखती है और राजस्थानी कविता को एक नई ऊर्जा और उष्मा दी है। उनकी लम्बी कविता के राजस्थानी कविता-संग्रह ’देसूंटो’ को काफ़ी सराहा गया है। ’देसूंटो’ रोटी-रोजी के फ़ेर में अपनी ज़मीन से बेदखल होने पर मजबूर और मजबुरियों में एक आदमी के भीतर-बाहर की उथल-पुथल का बहुत ही गहरी संवेदनात्मक अनुभूति का सजीव आख्यान है। नीरज दइया की इन हिन्दी कविताओं का मुहावरा भी उतना ही गहन और गंभीर है जितना कि राजस्थानी का। वे अपने आसपास की स्थितियों और समस्त विषमताओं को बहुत ही सूक्ष्मता से देखते-समझते हुए उसे काव्याभिव्यक्ति देते हैं। यहां प्रस्तुत है उनकी कविता की प्रेम दृष्टि और प्रेम-परख से युक्त एक हरा-भरा संसार...
22 सितंबर 1968 को रतनगढ,चूरु (राजस्थान) में जन्मे डा. नीरज दइया वर्तमान में केंद्रीय विद्यालय, क्रमांक-1, वायुसेना, सूरतगढ, जिला गंगानगर (राज) में हिन्दी के पी.जी.टी. अध्यापक हैं। लेखन नीरज जी को विरासत में मिला है। आपके पिता स्व. सांवर दइया केंद्रीय साहित्य अकादमी से पुरस्कृत राजस्थानी के ओजस्वी कथाकार, कवि थे। इसीलिए नीरज साहित्यिक वातावरण में पले-बढे और आरंभ में राजस्थानी में ही लिखना स्वीकार किया। नीरज मानते हैं कि लेखन में भाषा नहीं वरन लेखन ही महत्वपूर्ण होता है । एम. ए. हिंदी और राजस्थानी साहित्य में करने के पश्चात “निर्मल वर्मा के कथा साहित्य में आधुनिकता बोध” विषय पर शोध कार्य किया । साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली के लिए “ग-गीत” (काव्य संग्रह कवि मोहन आलोक) का राजस्थानी से हिंदी अनुवाद किया जो अकादेमी द्वारा 2004 में छपा । राजस्थानी में मौलिक कविता संग्रह के रूप में ‘साख’ तथा ‘देसूंटो’ कविता-संग्रह हैं । निर्मल वर्मा के कथा संग्रह और अमृता प्रीतम के कविता संग्रह के राजस्थानी अनुवाद भी किए जो महत्त्वपूर्ण माने गए हैं । अनेक संग्रहों में सहभागी रचनाकार के रूप में प्रकाशित और राजस्थानी भाषा, साहित्य और संस्कृति अकादमी, बीकानेर की मासिक पत्रिका ‘जागती जोत’ का संपादन भी किया । राजस्थानी कविता और अनुवाद के लिए कई मान-सम्मान और पुरस्कार भी मिले हैं । "आलोचना रै आंगणै" (आलोचना) 2011 पिछले ही दिनों बोधि प्रकाशन, जयपुर से प्रकाशित हुआ है। हिंदी कविताओं का प्रथम संग्रह ‘उचटी हुई नींद’ शीध्र-प्रकाश्य है । अकादमी में मनोनित राजनियुक्ति के अभाव में पिछले कई वर्षों से राजस्थानी साहित्य की एक मात्र अकादमिक मुख पत्रिका बंद होने के कारण राजस्थानी साहित्य लेखन में आए गतिरोध को नीरज दइया ने अपनी राजस्थानी वेब पत्रिका ’नेगचार’ के माध्यम से पाटने का सद्प्रयास भी किया जो अनवरत जारी है। संपर्क-
neerajdaiya@gmail.com
नीरज दइया की कविताएं
सांस-सांस गाती है..
झीनी-झीनी चदरिया
ओढ़ रखी है मैंने भी
तुम्हारे नाम की।
मेरी सांस-सांस
गाती है दिन-रात
बस तुम्हारा ही नाम।
भीतर-बाहर आती-जाती
गुनगुनाती है हवा
बस एक ही आलाप....।
***
छवि
तुम्हारी घबराहट से
होने लगती है-
मुझे भी घबराहट।
हर मौसम का है
अपना एक रंग
घबराहट में बिखर कर
बदल जाते हैं रंग
अमूर्त चित्र में
दिखने लगती है-
छवि कोई मूर्त...
***
चांद
हमारे प्रेम से पहले
था आकाश में चांद
मैंने देखा नहीं
जब देखा भी
दिखा नहीं ऐसा
दीख रहा है अब जैसा...!
माना कि चांद वही है
चांदनी भी वही है
बस देखने वालों में
हो गया हूं शामिल मैं
एक नई आंख लिए
क्या सूझा मुझे
कि बिठा दिया तुमको
मैंने चांद पर!
***
हर बार नया
घटित होता है
जब जब भी प्रेम
पुराना कुछ भी नहीं होता
हर बार होता है नया
घटित हुआ तब जाना-
यह एक अपूर्व-घटना है
किसी दुर्घटना जैसी भी....
मीरा ने कहा था-
घायल की गति
घायल जाने।
***
प्रेम का समय
जब मैंने किया प्रेम
वह समय नहीं था
वह प्रेम था समय से पहले
जब समय था प्रेम का
समय ने कुछ कहा नहीं
मैं दुखी था,
वह शोक किसका था-
उसका, प्रेम का या समय का?
समय निकलने के बाद
फिर हो गया है प्रेम
या लौट कर आया है प्रेम!
समय से पहले का प्रेम दुखदायी
और समय के बाद का प्रेम
होता है कष्टकारक
ठीक समय पर
होता ही नहीं प्रेम!
***
पानी
खुशी मिलने ही वाली थी
वह खड़ी थी सामने बनकर-
एक लड़की!
उससे इजहार किया जा सकता था
अपनी बेबसी का
अपने अरमानों का भी
सब कुछ कहा जा सकता था
मगर खुशी
इतनी पहले कभी नहीं मिली थी
एकदम पागल कर देने वाली
दिल को जोर-जोर से धड़काने वाली
जोश, उत्साह, उमंग में लिपटी खुशी
प्यार में लिपटना चाहती थी।
प्यार था भीतर हमारे
फिर भी हम चाहते थे प्यार।
प्यार की प्यास में भी
मांगते हैं हम पानी!
मैंने भी मांगा
प्यार की जगह
खुशी से सिर्फ- पानी...
पानी!
***
मौन शब्द
तुम्हारी तस्वीर देखकर
लगता है यह
कुछ कहने वाली है,
या फिर कुछ क्षण पहले ही
कुछ कहा है तुमने।
क्या कहा है तुमने?
कुछ कहा है तुमने!
मैंने नहीं सुना जिसे
या फिर मेरे सामने आते ही
कुछ कहते-कहते रुक गई हो तुम।
नियति है तस्वीर की
वह कुछ नहीं कहती
मगत बोलती बहुत कुछ है...
मित्रो! यहां पूरी हो गई थी कविता।
मगर एक टिप्पणी है,
आगे कि पंक्तियां-
उसने कहा-
यह कुछ नहीं कहेगी।
***
3 comments:
भाई नवनीत जी, आभार उदाहरण के इस उदाहरण का स्वीकारें। "देसूंटो" कविता के कुछ अंश आप ने अनुवाद किए थे जो समकालीन भारतीय साहित्य में प्रकाशित हुए थे उन्हें कविता कोश पर देखा जा सकता है- लिंक है http://www.kavitakosh.org/kk/index.php?title=निर्वासन_/_नीरज_दइया
नीरज जी की कवितायें पढवाने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया
कृपया वर्ड वेरिफिकेशन हटा दीजिए blog settings me
इतनी सुन्दर प्रेम कविताओं के लिए नीरज जी को बधाई और उदाहरण के लिए नवनीत जी आपको भी |
माधव नागदा
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