मित्रो! आज उदाहरण में 80 से भी अधिक वसंत देख चुके वरिष्ठ कवि, उपन्यासकार, कथाकार, नाटककार, रंगकर्मी व रंग निर्देशक डा. राजानंद की कविताएं। मैं अपने समय में आलोचना द्वारा उपेक्षित किए गंभीर रचनाकारों की बात यदाकदा करता रहा हूं, उनमें एक नाम डा. राजानंद का भी है। डा. राजानंद साहित्य के मौन साधक रहे हैं। उनके रचनाकर्म और रचनाकार का महत्त्व बताते के लिए शायद इतना बताना काफ़ी होगा कि सप्तक कवि, आलोचक, नाटककार डा.नंदकिशोर आचार्य ने अपनी सद्य प्रकाशित आलोचना कृति ’रचना का अंतरंग’ डा. राजानंद को समर्पित की है। राजानंद जी की इन कविताओं को पढते हुए आप पाएंगे कि ये कविताएं समकालीन कविता के मिज़ाज़ से कहीं पीछे नहीं हैं। इन कविताओं में कवि कितनी सरलता से बहुत ही सूक्ष्म अनुभूतियों को एक विराट अभिव्यक्ति देता देता है-
जो नहीं होता
वही हुआ हो जाता है
तभी तो तुम
सृष्टि हो
मैं क्रमश:
डा. राजानंद
जन्म: 15 अगस्त 1931(फ़ैजाबाद) शिक्षा: एम. ए. पी.एच.डी., बी.एड., साहित्यरत्न उपलब्धियां हासिल कर प्रौढ शिक्षा, पत्रकारिता, स्वतंत्र लेखन, नाट्य निर्देशन व आयाम नाट्य संस्थान के अध्यक्ष रहे। सृजन: शायद तुम्हें पता नहीं, तब क्या सोचोगे(काव्य), प्यासे प्राण, नीली झील: लाल परछाइंया, रूप-अरूप, यहां से वहां तक, घड़ी दो घड़ी, एक बार फ़िर, बिखरे-बिखरे मन, इदम्, अंशावतार, ये होशवाले लोग, औरत में औरत, ना सुख धूप न छांव, पूर्वजा (उपन्यास), मम्मी ऎसी क्यों थी, कल किसने देखा(कहानी संग्रह), बहादुर शाह ज़फ़र और अन्य एकांकी, सदियों से सदियों तक, अश्वथामा, रोशनीघर, राजानंद के नाटक(गणगौर/जोगमाया), आदमी हाजिर है/ चौकियां कौन तोड़ेगा, गुंगबांग मर गया(तीन नाटक), चंदा बसे आकाश, सरस्वती कहां खो गई(नाटक), शहद का महल, जब तक सांस तब तक आस( बाल नाटक), स्वाहा! स्वाहा! (नुक्कड़ नाटक), संवेदना के बिम्ब(आलोचना), गांधी युग: दशा-दिशा, गांधी दर्शन और शिक्षा, गांधी और भारत संस्कृति की धर्मिता(विविध) के अलावा वातायन, सप्ताहांत के लिए पत्रकारिता व रंग रंग बहुरंग(शिक्षा विभाग राज.) का सम्पादन।
पुरस्कार व सम्मान : एक बार फ़िर(उपन्यास) के लिए राजस्थान साहित्य अकादेमी का रांगेय राघव पुरस्कार, इदम्(उपन्यास) के लिए उत्तरप्रदेश हिन्दी संस्थान पुरस्कार के अलावा राजस्थान साहित्य अकादेमी व राजस्थान संगीत नाटक अकादेमी के कार्यकारिणी सदस्य भी रहे।
विशेष: पुरस्कृत नाटक- चीख, सदियों से सदियों तक, चौकियां कौन तोड़ेगा का लेखन व निर्देशन
सम्प्रति: 2/30 मुक्ता प्रसाद नगर, बीकानेर- 334004, दूरभाष: 2252513
डा. राजानंद की कविताएं
सूना
जा रहा था
सूना
न इधर
न उधर
देखता
चेहरा सख्त
हिला हुआ
पर्तों से।
मानता है वह
अकेले को
अकेला चलना चाहिए
अपने को
कातते
लपेटते
उधेड़ते।
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क्रमश: मैं
जो नहीं होता
वही हुआ हो जाता है
तभी तो तुम
सृष्टि हो
मैं क्रमश:।
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पुनरावृत्ति
तुम्हारी सुगंध
जो सांसों में बसकर
रात-रात सपने रचती थी
अब मेरी रहाइश हो चुकी है।
वही तो है जो मुझे अक्षय रखती है
मैं शीशे-सा पारदर्शी
पहुंचता हूं अन्यों के पास
उनके अद्भुतपन को
अभिव्यक्त करता हुआ।
वे समझते हैं
प्रकट हो रहा हूं मैं
जबकि होती है
वास्तव में
तुम्हारी पुनरावृत्ति
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सुबह का चांद
ठहरा रहता है सुबह
चांद, कि वह सुने
अपने लिए
प्रार्थना के शब्द।
सूरज के उगते ही
करने लगते हैं लोग
सूर्य नमस्कार
मुस्कराता है चांद
व्यंग्य में।
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उत्सर्ग
तुमने ही कहा था
देह में मन है
मन में ऊर्मीयां
रहती हैं
स्व के साथ
देखना, सुनना, चाहना
हुआ कई बार
कभी स्वीकारा
स्व ने
कभी नकारा।
तब तुम आए
छवियों
छवियों की छटा
के साथ
स्वीकारा
हां, स्वीकारा
तुम्हें अधूरेपन के
पूरक की तरह।
एकमेक हो गए हम
जैसे बादल में बादल
जल में जल
यही तो होना था
उत्सर्ग पर्व।
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