Sunday 27 October 2013 0 comments

उस मृत लड़की का बयान, जिसे उसके पिता ने गोली मार दी व अन्य कविताएं : संजय कुंदन

मित्रो! संजय कुंदन हमारे समय की कविता के ऎसे हस्ताक्षर है जिनकी कविता में हमारा समय बोलता है, संजय की कविताओं में हमारे जीवन-समाज में व्याप्त आपाधापी, दोगलेपन और विसंगियों को बहुत ही पैनी दृष्टि से पकड़ते हुए पूरे उद्दाम और संवेदना से प्रकट होती प्रतीत होती है। 
’योजनाओं का शहर’ काव्य संग्रह के प्रकाशन पर वरिष्ठ कवि-कथा-व्यंग्य-पत्रकार विष्णु नागर ने सही ही कहा था,’संजय की कविता आज की साधारण-सामान्य जिन्दगी का दस्तावेज है। एक निम्नवर्गीय शहरी का जीवन नल आने के इन्तजार में कैसे खप और बदल जाता है, यह कविता इस बात की गवाही देती है। यह कविता साधारण आदमी के जीवन से दाल के गायब हो जाने जैसी मामूली बात भी करती है। यह कविता नमक, माचिस, गुड़ की बात भी करती है। यह उस आदमी को अपराधी बना दिए जाने की बात करती है जो कभी अक्सर किनारे बैठकर नदी में कंकड़ फेंकता हुआ देखा जाता था, जो छठ के मौके पर नंगे पैर सिर पर टोकरी उठाए हाँफते हुए गंगा तट तक जाता था, जो ईंट के विकेट के आगे चौके-छक्के उड़ाता हुआ नजर आता था। यह कविता इस तरह साधारण के तमाम असाधारण विवरणों से भरी हुई है लेकिन अपनी असाधारणता को भी साधारणता के साथ धारण किए हुए, बिना शोर किए, बिना चीखे-चिल्लाये। वह असाधारण को इस तरह साधारण करती है कि जो साधारण बार-बार दिखने के कारण न दिखने जैसा लगने लगा था, वह दिखने लग जाता है लेकिन कवि उसे इस तरह नहीं दिखाता कि देखो-देखो, यह मैं हूँ जो आपको दिखा रहा हूँ बल्कि कवि तो चुपके से आपके और यथार्थ के बीच न आने की भरपूर कोशिश करता है। आप इस कविता की मार्मिकता से भी जब गुजरते हैं तो ऐसे नहीं कि आपको मार्मिकता का टूरिज्म कराया जा रहा है बल्कि इस तरह जैसे वह वहाँ पहले से मौजूद हो, बस ये है कि आपने संयोग से उसे कविता के बहाने देख लिया है। इस कविता में व्यंग्य भी जहाँ-तहाँ बिखरा पड़ा है लेकिन वह बड़बोला नहीं है, हाँ बोलता जरूर है। इसमें एक कविता है ‘हाँ बोलने के बारे में’, जो दरअसल न बोलने की जरूरत के बारे में है। यही बात इन सारी कविताओं पर भी लागू होती है। यह हाँ के विरुद्ध इनकार की कविता है।

खुद संजय का अपनी कविताई के बारे में यह वक्तव्य,’कविता मेरा सामाजिक-राजनीतिक वक्तव्य भी है। कविताओं के ज़रिए मैं उनसे संवाद करना चाहता हूँ जो जीवन को देखते हैं मेरी ही तरह और उसे बदलने के लिए बेचैन होते हैं मेरी ही तरह।’ ही बताता है कि संजय का कवि किस कदर आक्रोशित है अपने इस समय को पढते हुए....  

संजय कुंदन
जन्म : 7 दिसंबर 1969, पटना (बिहार) हाल दिल्ली,
शिक्षा : एम.ए. (हिन्दी साहित्य) पटना विश्वविद्यालय 
मुख्य कृतियाँ : कागज के प्रदेश में, चुप्पी का शोर, योजनाओं का शहर (कविता संग्रह),बॉस की पार्टी (कहानी संग्रह) , टूटने के बाद (उपन्यास) 
सम्मान : भारत भूषण अग्रवाल पुरस्कार, हेमंत स्मृति कविता सम्मान, विद्यापति पुरस्कार
संपर्क : सी-301, जनसत्ता अपार्टमेंट, सेक्टर-9, वसुंधरा, गाजियाबाद-201012 मोबाइल: 9910257915


संजय कुंदन की कविताएं

कुछ न कहते हुए 

ऐसे समय में जब सब बोल रहे थे  
मैं कुछ नहीं कह पा रहा था 
फेसबुक पर कह रहा था कोई  
कि अभी -अभी वह नीली बनियान खरीद कर आया है 
जो एक बड़ी कंपनी की है  
कोई बता रहा था कि उसने अपनी कुतिया का नाम मॉली रखा है  
जो इतनी समझदार है जितना कोई मनुष्य भी नहीं हो सकता 
कोई अपने जूते को सबसे आरामदेह बता रहा था 
तो कोई अपने चश्मे को सबसे कीमती। 
मुझे लगता था  
मैं जब भी मुंह खोलूंगा  
मेरे भीतर से एक उदास पेड़ की पुकार आएगी  
अगर मैं कहूं कि मैं दम तोड़ चुके  
एक पेड़ को इतिहास को खंगालना चाहता हूं  
तो दुनियादारों के लिए इसका कोई मतलब नहीं होगा 
अगर मैं कहूं कि एक दोस्त को समझना  
किसी उफनती धारा को पार करना है 
तो सूचना के संजाल में हर क्षण विस्तृत हो रहे  
मित्र संप्रदाय को यह बुरा लगेगा  
अगर कहूं कि मुझे नहीं मालूम कि सच क्या है  
तो यह आज के दौर में  
जब सब कुछ तय कर लिया गया है 
प्रलाप ही माना जाएगा  
अब तो बहुत आसान था फैसला देना  
बस माउस क्लिक करके या कुछ शब्द टाइप करके  
खड़ा हुआ जा सकता था किसी विचार के साथ  
किसी को स्वीकृत किया जा सकता था  
और किसी को खारिज 
किसी शोहदे को घोषित किया जा सकता था मसीहा  
किसी सौदागर को बताया जा सकता था  
सबसे बड़ा परिवर्तनकामी 
इतनी आसानियों के बीच  
चीजों को उलझाने वाली  
मेरी बातों को भला कोई क्यों सुनेगा चाहेगा! 
*****

आग 

अपना सगा तो उसने  
अपने पिता को भी नहीं समझा था 
जो उसे छुपाना चाहते थे  
अपनी एक भूल की तरह  
उसके सगे भाई भी उसे सगे नहीं लगे  
जो उसे चुनौती की तरह देखते थे  
और प्रतियोगिता करते थे उसकी छाया से भी  
एक मां थी उसकी सगी  
जो अपनी चुप्पी से उसके पक्ष में खड़ी रहती थी 
पर असल में उसकी सगी थी वह आग  
जो उसके साथ ही पल-बढ़ रही थी  
जिससे खेलना उसे अच्छा लगता था  
कभी-कभी अचानक उसके रक्त में उबाल आ जाता था  
और आंखों में उठने लगती थीं लपटें  
यह बात मोहल्ले की फुसफुसाहटों में  
बड़े अश्लील ढंग से कही जाती थी  
उसके भीतर आग है आग!  
***** 

उनके बारे में 

उनके बारे में लिखना बहुत आसान है 
जिन्हें हम बहुत कम जानते हैं 
जैसे समुद्र के बारे में  
जैसे पहाड़ के बारे में  
बार-बार आता रहता है कविता में  
कोई समुद्र और पहाड़  
जिसे कवि कभी देख आया होता है  
एक-दो बार यात्रा में  
सबसे कठिन है उसके बारे में लिखना  
जिसे हम बहुत ज्यादा जानते हैं 
वह इतना करीब होता है कि कई बार 
महसूस तक नहीं होता उसका होना  
वह इतना दिखता है कि लगता है इसे देखना क्या है 
जिनकी आंखें सैकड़ों प्रकाश वर्ष दूर एक नक्षत्र में  
जाने क्या-क्या ढूंढ लेती हैं 
वे नहीं पढ़ पाते   
अपने बगल में लेटी एक औरत की  
आंखों की नमी।  
***** 

उस मृत लड़की का बयान, जिसे उसके पिता ने गोली मार दी 
मैं अपने को भाग्यशाली मानती थी  
कि मुझे गर्भ में नहीं मारा गया 
मुझे लगा था कि आप सब मुझे बढ़ते देखना चाहते हो 
इसलिए मैं बढ़ना चाहती थी खूब तेजी के साथ  
किसी लता की तरह 
नदी की एक तेज धारा की तरह  
मैं चट्टानों को काटते हुए आगे बढ़ने को बेताब थी 
मैंने सुना था और देखा भी था एक घर का ङ्क्षपजरे में बदलना  
उसमें बंद डर-डर कर मुंह खोलती थी लड़कियां 
पर मैं अपने को भाग्यशाली मानती थी कि 
जी भर निहार सकती थी आकाश 
बुन सकती थी इच्छाएं 
  
मैंने चाहा कि रेडियो सुनूं और आपने सुनने दिया 
मैं पढ़ना चाहती थी और आपने पढ़ने दिया 
मैं जीन्स पहनना चाहती थी और आपने पहनने दिया 
जब मैं सपनों के आकाश में पतंग की तरह लहराने लगी  
तब मुझे पता चला कि आपने कई अदृश्य डोरों से मुझे बांध रखा था 
लेकिन तब तक आंधी बनकर उतर चुका था मेरे भीतर प्यार 
मैंने तोड़ दिए धागे  
आपको सब कुछ मंजूर था 
मेरा हंसना बोलना, इत्र में नहाना   
बस मेरा प्रेम करना मंजूर न था आपको 
  
जब आपने मेरे ऊपर बंदूक तानी तो  
आपके हाथ थोड़ी देर के लिए कांपे थे  
पर आपकी बची-खुची मर्दानगी ने आपको संभाल लिया था 
आपने पूरी कोशिश की कि आप पौरुष  
और आत्मविश्वास से भरपूर दिखें  
जब आप पुलिस के सामने कह रहे थे  
कि आपको अपने किए पर पछतावा नहीं है  
और आपने यह हत्या अपने सम्मान की रक्षा के लिए की है 
हालांकि आपकी नजरें बार-बार नीची हो जा रही थीं  
और गला भी भर्रा जा रहा था ठीक एक हारे हुए योद्धा की तरह। 
  
तब मुझे पहली बार पता चला कि एक बर्बर आदमी  
कितना डरपोक होता है  
अब जबकि मैं नहीं हूं आपकी दुनिया में  
आप बच-बचकर चलते हो मेरे पैरों के निशान से  
हवा में मेरी हंसी की अनुगूंज से 
अफसोस कि आपकी बंदूक उन्हें नहीं मिटा सकती। 
***** 

समझदार लड़की 

उसकी मां उसे जीवन भर नादान देखना चाहती थी 
पर शहर ने उसे समझदार बना दिया 
एक मायावी शहर ने 
सबसे पहले उसने अपनी हंसी की लहरों को बांधा 
उसकी हंसी ही उसकी दुश्मन बन सकती थी 
यह उसने जान लिया था 
उसने सीख लिया कि कहां कितना वजन रखना है अपनी हंसी का 
थोड़ी भी अतिरिक्त हंसी उसे गिरा सकती थी किसी गहरी खाई में 
वह पहचानने लगी थी भाषा के भीतर की खाइयों को 
यहां सहानुभूति का अर्थ कारोबार भी था 
और दोस्ती का अर्थ आखेट हो सकता था 
इसलिए वह सबसे ज्यादा सावधान रहती थी 
मोरपंख जैसे शब्दों से 
गुलदस्ते जैसे शब्दों से 
उसे पता चल गया था कि 
विनम्रता कितना खतरनाक फंदा बुन सकती थी 
वह बहुरुपियों को उन्हीं के हथियार से 
चुनौती दे सकती थी पर उसे उन हथियारों से कोई लगाव न था 
उसे किसी को हराने और जीतने का शौक न था 
वह तो किसी तरह बच-बचाकर निकल जाना चाहती थी 
अपने सपने की ओर। 
*****

६ 
सुखी लोग 

सुखी लोगों ने तय किया था कि अब केवल सुख पर बात होगी 
सुख के नाना रूपों-प्रकारों पर बात करना 
एक फैशन बन गया था यहां 
सरकार भी हमेशा सुख की ही बात करती थी 
उसका कहना था कि वह सबको सुखी तो बना ही चुकी है 
अब और सुखी बनाना चाहती है 
उसके प्रवक्ता रोज सुख के नए आंकड़े प्रस्तुत करते थे 


सरकार के हर फैसले को सुख कायम करने की दिशा में 
उठाया गया कदम बताया जाता था 
लाठी और गोली चलाने का निर्णय भी इसमें शामिल था 
इस सब से दुख को बड़ा मजा आ रहा था 
वह पहले से भी ज्यादा उत्पाती हो गया था 
वह अट्टहास करता और कई बार नंगे नाचता 
पहले की ही तरह वह कमजोर लोगों को ज्यादा निशाना बनाता 
वह खेतों का पानी पी जाता, फसलें  चट कर जाता 
छीन लेता किसी की छत और किसी की छेनी-हथौड़ी 
यह सब कुछ खुलेआम हो रहा था 
पर अखबार और न्यूज चैनलों में केवल मुस्कराता चेहरा दिखाई पड़ता था 
हर समय कोई न कोई उत्सव चल रहा होता मनोरंजन चैनलों पर 
वैसे सुखी लोगों को भी दुख बख्शता नहीं था 
कई बार अचानक किसी के सामने आकर वह उस पर थूक देता था 
सुखी व्यक्ति इसे अनदेखा करता 
फिर चुपके से रुमाल निकालकर थूक पोंछता 
और चल देता किसी जलसे के लिए। 
*****

जादू 

कौन सी चीज कब जादू कर दे 
कहना मुश्किल है 
किसी दिन चले गए चौलाई साग लाने 
पांच किलोमीटर दूर पैदल, प्रचंड धूप में 
फिर स्वाद-स्वादकर खाया और दूसरों को भी बताया 
कई दिनों तक चर्चा की 
कोई कह सकता है एक मामूली चीज के लिए 
ऐसा पागलपन ...क्या मतलब है! 
अब जादू तो जादू होता है 
वह बड़ा या छोटा नहीं होता 
एक दिन आया भीख मांगता कोई 
पता नहीं ऐसा क्या गाया कि भर्रा गया गला 
मन न जाने कहां चला गया कितने बरस पीछे 
कि लौटना मुश्किल हो गया 
भटकते रहे एक पुराने शहर में 
ताकते रहे खिड़कियों पर 
न जाने क्या खोजते रहे। 
*****

अधूरी प्रेमकथा  

अचानक जमा होने लगते हैं रंगीन बादल 
दिखाई पड़ते हैं कुछ प्रवासी पक्षी पंख फैलाए 
एक नया मौसम उतरता है  
जिंदगी के एक ऐसे मोड़ पर  
जब उकताहट और खीझ से लथपथ  
आदमी नाक की सीध में चल रहा होता है  
खुद को घसीटते हुए  
एक अधूरी प्रेमकथा में  
फिर से लौटती है रोशनी  
कुछ पुराने पन्ने लहलहा उठते हैं   
फिर वहीं से सब कुछ शुरू होता है  
जहां कुछ कहते-कहते कांप गए थे होंठ  
और बढ़ते-बढ़ते रह गए थे हाथ  
हवा अपने पैरों में बांधने ही वाली थी घुंघरू 
जमीन को छूने ही वाली थीं कुछ बूंदें  
खत्म कुछ भी नहीं होता 
स्थगित भर होता है  

न जाने कितनी बार जीवन लौटता है  
इसी तरह अपनी कौंध के साथ।  
*****

संजय कुंदन

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