Saturday 16 August 2014

अब स्त्री नहीं हारेगी प्रेम में... और अन्य कविताएं - इरा टाक

मित्रो! आज उदाहरण में हमारे बीच हैं बहु आयामी प्रतिभा की धनी युवा कवयित्री इरा टाक। इतनी कम उम्र में जितनी परिपक्व इरा अपनी लेखनी में दिखायी देती हैं उतनी ही सिध्दस्त अपनी रंग-कूंची में। सन 2011 से प्रकाश में आयी उनकी प्रतिभा के कमाल अनवरत नित नयी ऊंचाइयां छूते जा रहे हैं और अपने अभिनव चित्रों के बदौलत कला के क्षेत्र में आज वह जाना-पहचाना हस्ताक्षर और एक ऎसा अंतर्राष्ट्रीय आइकॉन बन गयी हैं कि उन से पूर्व इसी क्षेत्र में काम करनेवाले महारथी अवाक रह गए हैं। देश की शायद ही कोई प्रतिष्ठित कला दीर्घा और कला संस्थान होगा जहां उनके चित्रों की प्रदर्शनी न लगी हों या उन्हें आमंत्रित नहीं किया गया हो। इस क्षेत्र में कला- जगत को इस युवा कूंची से बहुत उम्मीदें  और भरोसा अकारण और अनायास नहीं है।

       इरा की कविताओं का केंद्रीय भाव प्रेम हैं लेकिन यह प्रेम एकांगी नहीं है, उनकी आंख जिस तरह प्रेम को देखती है, व्यक्त करती है और सहेजती है, दर्शनीय है और उन्हें प्रेम कविताएं लिखनेवाले अन्य कवियों से अलग करती हैं..प्रेम कविताओं में वह ’मेरे प्रिय!’ सम्बोधन के माध्यम से प्रिय से संवाद करती है और यह उनका प्रिय मुहावरा है जिसके माध्यम से उनकी कविताएं प्रेम के कई अनछुए पहलुओं को उद्घाटित करती हैं। इन कविताओं में भी उनका कवि, प्रेम में घोर अव्यावहारिक कविता करता प्रेम में डूबता- तैरता प्रेम-दरिया पार करने की जद्दोजहद करता कभी  खुद से दूर जाने के बारे में सोचता है  कभी सवाल उठाता है तो कभी क्रोध भी करता है लेकिन उसके क्रोध में भी प्रेम में ही है। 

इरा टाक 

बीएससी, एमए  और आगरा विश्वविद्यालय से मास कम्यूनिकेशन में पीजी डिप्लोमा प्राप्त  बहु आयामी प्रतिभा की धनी युवा इरा स्वतंत्र लेखक और बहुत ही कम समय में अंतर्राष्ट्रीय ख्याति अर्जित करनेवाली युवा चित्रकार इरा टाक एक स्व प्रशिक्षित चित्रकार हैं वे दो हजार ग्यारह से कला जगत में सक्रिय हैं इनकी पेंटिंग्स देश से बाहर अमेरिका, इंगलैंड, आयरलैंड, स्पेन, फ्रांस, बेल्जियम, सउदी अरब, पाकिस्तान आदि तक अपनी धाक जमा चुकी हैं। कई पत्र- पत्रिकाओं, किताबों के कवर और म्यूजिक एलबमों के कवर के अलावा २०११ में इन्हें एक अमेरिकन वेबसाइट यूटोपियन ने आर्टिस्ट ऑफ दी ईयर का अवार्ड और २०१२ में जयपुर के NGO प्रेम मंदिर संसथान ने वुमन एक्सीलेंस अवार्ड और २०१३ में जयपुर के NGO श्री जी सेवा संसथान ने बालिका रतन अवार्ड से सम्मानित किया इरा ने अपना करियर एक टीवी पत्रकार के रूप में शुरू किया पर मन में कुछ अलग करने  की इच्छा थी अपने चित्रों में वे खुद को प्रकृति के बहुत करीब पाती है।इनके कलेक्शन में अमूर्त चित्रों की भी खासी संख्या शामिल हैं। फोटोग्राफी करने की भी बेहद शौक़ीन हैं ... उनकी कविताओ एक किताब अनछुआ ख्वाब २०१२ में आई जो काफी चर्चित हुई कविताओ की दूसरी किताब "मेरे प्रिये के नाम १०० सन्देश " बोधि प्रकाशन से आ चुकी है।

आत्मकथ्य

लिखने और चित्रकारी का शौक मुझे बचपन से था ये नहीं कहा जा सकता। साइंस बायोलॉजी से पढाई की तो फाइल के लिए काफी diagrams बनाने पड़ते थे। बीएससी के दौरान कवितायेँ लिखने का क्रम चालू हुआ था। कभी कभी डायरी भी लिखती थी। फिर जीवन की भागदौड़ में सब छूट गया। बीच में कुछ समय टीवी पत्रकार के रूप में भी काम किया। पर मन भटक रहा था। जैसे उसकी तलाश कुछ और थी। तीन- चार  साल पहले मैंने अपना बनाया एक चित्र फेसबुक पर डाला। वह हाथों हाथ अच्छे दाम पर न्यूयॉर्क में सेल हो गया। बस यही से शुरू हुआ पेंटिंग का अनवरत सिलसिला। मैं एक स्व प्रशिक्षित चित्रकार हूं। साथ ही साथ कवितायेँ फिर उतरने लगी। तब से शब्दों और रंगों को थाम रखा है। आजकल कहानी की विधा में भी हाथ आजमा रही हूँ। एक  उपन्यास पर भी काम ज़ारी है । कई किताबो पर मेरी पेंटिंग्स कवर के रूप में हैं। मेरा आर्ट वर्क इस साल राष्ट्रीय कला प्रदर्शनी के लिए चयनित हुआ। जो बहुत बड़े सम्मान की बात है। बहुत अच्छा लगता है रंग और शब्दों से जीवन को अपने ढंग से सजाना। 

अब स्त्री नहीं हारेगी प्रेम में... और अन्य कविताएं - इरा टाक



एक घोर अव्यवहारिक कविता

एक पलड़े में रख दिए 
सारे सपने,ज़िम्मेदारी,.महत्वाकांक्षाएं
दोस्तों का प्यार  
और एक पलड़े में केवल वो था 
फिर भी झुका रहा वो पलड़ा 
उसके वजन से !
हर उपलब्धि पर भारी हो जाता है 
उसका होना या  होना !
क्या यही है प्रेम में होना 
या मैं बन ही नहीं पाया 
व्यवहारिक !
साथ होना उसका 
एक ज़रूरत है 
जैसे हवा पानी और भोजन
जीने के लिए !
जैसे उत्प्रेक हो वो  
जो किसी क्रिया को
 
धीमा या तेज़ कर देता है 
बिना शामिल हुए उसमे 
क्या यही है प्रेम में होना 
या मैं बन ही नहीं पाया 
व्यवहारिक !

कितना अच्छा लगता है कभी यूँ खुद से दूर जाना

 

कुछ करते हुए बैठे रहना घंटो तक
सिर्फ शोर सुनते हुए लहरों का
भूल जाना अच्छी बुरी हर याद को
बहा देना नमकीन पानी में हर परेशानी
कितना अच्छा लगता है कभी यूँ
खुद से दूर जाना

रेत का घर बना के सीपियों से सजाना
नाम लिख कर अपना गीली रेत पर
खुद ही मिटाना
कितना अच्छा लगता है कभी यूँ
खुद से दूर जाना

हिचकोले खाती हुई मछुआरों की नाव
लोगो का समंदर में फूल नारियल चढ़ाना
रेत पर बैठे खोये हुए से प्रेमी जोड़े
खुद को भूल दुनिया पे नज़र
कितना अच्छा लगता है कभी यूँ
खुद से दूर जाना

कोई नहीं है साथ तो क्या
कायनात तो है
नए तराने बुन के
नए सुर में गुनगुनाना
कितना अच्छा लगता है कभी यूँ
खुद से दूर जाना ...इरा टाक ...

एक सवाल... 

बड़ा विचित्र है ये प्रेम 
कितना साथ घूमते थे हम 
घंटो फ़ोन पर बातें करते थे 
ढेरों कीमती तोहफ़े देते थे एक दूसरे को 
सैकड़ो तस्वीरें साथ खींची थी 
ताकि साथ के हर लम्हे को कैद कर सकें!
कमरे की दीवारों परलैपटॉप की स्क्रीन पर 
हर तरफ तुम ही तुम नज़र आते थे 
मेरी हर खरीददारी तुम्हारे लिए होती थी 
नाम भी सिर्फ तुम्हारा ही ,होठो पर रहता था 
हर फ़िक्र हर ख़ुशी बांटते थे 
उम्र भर के वादे भी किये थे 
कितने ही मंदिरों में उम्र भर साथ की दुआएं की थी 
जैसे सैकड़ो जोड़े किया करते हैं 
फिर क्यों और क्या हुआ 
अचानक मेरा प्रेम विलुप्त क्यों हो गया 
जबकि मैं सच्ची थी अपनी भावनाओ मे
किसी भी पल मैंने स्वार्थवश प्रेम नहीं किया था 
अब यकीन आया कि प्रेम 
इनमे से किसी भी चीज़ का मोहताज नहीं 
होता है तो होता है 
और नहीं होता तो नहीं होता ...इरा टाक 

अब स्त्री नहीं हारेगी प्रेम में... 

मेरी हर कोशिश जो ज़िंदा रखना चाहती थी
हमारे "प्रेम" को अब थम गयी
आज़ाद कर दिया तुम्हे हर बंधन से
जिनमे तुम कभी बंधे ही नहीं
जियो अपने स्वपन और ख्वाइशें
कोई शिकायत नहीं..हैं अब तुमसे
तुमसे जुड़ना मेरा निर्णय था
और गलत निर्णय भी हो जाया करते हैं
पर ज़िन्दगी में ख़ुशी बड़ी है और लाज़मी भी
तुम्हारी क्रूरता ने थोडा और मज़बूत किया है
वक़्त खो कर तुम्हारी फितरत समझ ली
सबसे कीमती थे तुम मेरे लिए
पर तुम्हारे लिए ,मैं सब चीज़ों के बाद थी
प्रेम में डूबी हुई आकंठ ,तुम्हे माफ़ करती रही 
पर अंत में अपने बारे में सोचना पड़ता है
और ज़िंदा रखने को खुद को
बचाना चाहती हूँ अपना स्वाभिमान
अब स्त्री नहीं हारेगी प्रेम में ...इरा टाक


उम्र की ढलान पर थके हुए से मेरे पिता 


उम्र की ढलान पर थके हुए से मेरे पिता 
आज भी चिंता करते हैं मेरी 
मेरे जागने से सोने तक 
मेरी बीमार माँ की सेवा करते हैं 
कभी खुश हो कभी खीजते हुए 
उम्र के ढलान पर थके हुए से मेरे पिता

कभी उन्होंने मेरी तारीफ नहीं की 
मैंने सुना छुप के ...उन्हें तारीफ मेरी करते हुए 
मैं कितनी बार अनसुनी कर देती हूँ उनकी बातें 
पर वो एक बार सुन के मेरी बात मान जाते हैं 

उम्र के ढलान पर थके हुए से मेरे पिता
उनके कहे कड़वे शब्द मैं भूल नहीं पाती 
पर वो भुला देते हैं मेरी कही हर कड़वी बात 
उनका होना ही बहुत है मेरे लिए 
जैसे घने बरगद के नीचे मेरा बसेरा 

माँ नहीं ठीक तो माँ होने की कोशिश करते
उम्र के ढलान पर थके हुए से मेरे पिता ...

क्रोध ...

मेरा
 क्रोध ज्वार भाटे की तरह था
और तुम्हारा बाढ़ की तरह
मैं बोलती जाती रोती जाती
तुम भी पूरी शक्ति से चिल्लाते
फिर सब कुछ शांत हो जाता
मेरे मन में कल कल प्रेम सरिता
फिर बहने लगती पहले से और निर्मल
पर तुम रोक लेते उस बाढ़ के पानी को
पता नहीं है कि ठहरा पानी सब सडा देता है
और मैं कोशिश में रहती रास्ते बनाने की
ताकि ठहरा हुआ पानी निकल जाये
पनप सके प्रेम का पौधा
नम जमीन पर
सडन और घुटन से दूर
...

-इरा टाक

2 comments:

Archana Gangwar said...

और मैं कोशिश में रहती रास्ते बनाने की
ताकि ठहरा हुआ पानी निकल जाये
पनप सके प्रेम का पौधा
नम जमीन पर
सडन और घुटन से दूर...

waah jub bhi aapko pada ....kuch pal ko thahar jati hoo wahi par

Era Tak said...

शुक्रिया :)

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