Tuesday 22 July 2014

हाशिया व अन्य कविताएं- मनीष कुमार

मित्रो! उदाहरण के काव्य-प्रांगण आज प्रस्तुत है पहली बार सामने आ रही एक नवांकुर कलम, मनीष कुमार की इन कविताओं में अपने समय की कहन देखते ही बनती है 
मनीष कुमार
जन्म 1 मार्च, 1985 
बीकानेर जिले की तहसील लूनकरनसर के कालू गांव में हुआ।
शिक्षा : बी.कॉम।

हाशिया व अन्य कविताएं- मनीष कुमार 

मैं
एक दिन
मुझसे मिलने गया मैं
पता चला मैं बाहर हूं
व्यस्त हूं किसी काम में
कुछ देर इंतजार किया मैं ने
कुछ देर बाद मैं लौट आया
फिर मालूम हुआ
तब तक लौट चुका था मैं
000

खुद की समझ
कभी कभी लगता है
खुद को समझ नहीं पाया मैं
कभी कभी लगता है
मेरी समझ
मुझे समझ नहीं पायी
और कभी-कभी लगता है ये
मेरी समझ के बाहर है
खुद को समझाना
000

राह में हम
राह में तुम हो
राह में मैं हूं
देखना
एक दिन
राह में मिलेंगे
हम दोनों
और
एक दूसरे को देखकर
होंगे चकित
000

मुसाफ़िर
चलते रहो
चलती हुई चींटी ने कहा
कह कर घुस गयी बिल में
उड़ना ही धर्म है
चिड़िया चिल्लायी
अपने घोसलें से
मंजिल करीब है
सोए हुए खरगोश ने कहा
मुसाफिर ने सब को सुना
सच्चे दिल से दुआ दी
और
चल दिया घर की तरफ
000

गुस्सा व रिझाना
रिझाना आसान है
और गुस्सा दिलाना मुश्किल
मैंने कहा-
तत्काल हंसी छूटी उधर
नहीं-नहीं गलत कह रहे हो।
गुस्सा दिलाना आसान है
और रिझाना मुश्किल।
मैंने नजरे दौड़ायी
उस ओर
मैं गलत नहीं
बिल्कुल सही था
मेरी जीत उनके होंठों पर बसी थी
000

खुशी
खुशी
सच में
क्या सच में महसूस की है
तुमने सच्ची खुशी
कहां मिल सकती है खुशी
कहां पाया जा सकता है उसे
गम भरे दिनों के बावजूद
कहते हुए
उसकी आंखों में 
अजब-सी खुशी की चमक दिखी
मैंने वादा किया है उस से
दिलाउंगा उसे सच्ची खुशी
वही खुशी
जो आज उसकी आंखों में देखी थी मैंने
कल उसे दे दूंगा उधार
बिना ब्याज के
000

जीवन में
जीवन में
(कुछ भी खोजें)
कही भी
कभी भी
किसी की तरह
कुछ नहीं मिलेगा
फिर भी
मैं यहां
तुम यहां
एक दूसरे का मुंह ताकते हुए
क्यों?
000

कहना और सुनना
कहने को बहुत कुछ है
मेरे पास
अगर तुम सुनना चाहो
सुनने को बहुत कुछ है
मेरे पास
अगर तुम्हरी आंखें बोले
इस
कहने और सुनने के सिवाय
बहुत कुछ है बचा हुआ
जो है कहने को
जो है सुनने को
कभी आना फुरसत में
बचा हुआ कुछ कहना तुम
बचा हुआ सुनना चाहता हूं मैं
000

तुम्हारे भीतर
तुम्हारे भीतर
एक फूल है
मुस्कुराने दो
तुम्हारे भीतर
एक गंध है
हवा में घुल जाने दो
तुम्हारे भीतर
एक बच्चा है शैतान
मुस्कुराने दो
रखना यह फूल
यह गंध
यह बच्चा
संभाल के
एक दिन आऊंगा मैं
खेलूंगा इनके साथ
000

हाशिया
लिखता जाता हूं
और छोड़ता जाता हूं
हाशिये कि जगह
क्यूं छोड़ा जाता है हाशिया
क्या हाशिये पर है लेखनी
क्या हाशिये पर है लिखने वाले
क्या हाशिये पर है पाठक
नहीं
बिल्कुल नहीं ...
बिल्कुल भी नहीं
शायद कुछ बचा रहा है लिखना
जिसे हम लिखेंगे
हाशिये पर
कभी और
000
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ई-मेल : mk629549@gmail.com

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