मित्रों! इस बार उदाहरण में प्रस्तुत है डा. दिनेश त्रिपाठी ’शम्स’ की हिन्दी गज़लें । आम आदमी की भाषा में आम आदमी से आम आदमी की बात करती शम्स की ये रचनाएं ध्यान अवश्य खींचती है..
परिचयडा. दिनेश त्रिपाठी `शम्स’ उपनाम - `शम्स’,जन्मतिथि -०३ जुलाई १९७५,जन्मस्थान – मंसूरगंज , बहराइच , उत्तर प्रदेश, शिक्षा – एम . ए.(हिन्दी), बी. एड., पीएचडी.(हिन्दी), सम्प्रति – वरिष्ठ प्रवक्ता (हिन्दी) जवाहर नवोदय विद्यालय , बलरामपुर , उत्तर प्रदेश, पुस्तकें – जनकवि बंशीधर शुक्ल का खडी बोली काव्य (शोध प्रबंध ),मीनाक्षी प्रकाशन,नयी दिल्ली, आखों में आब रहने दे (गजल संग्रह ) मीनाक्षी प्रकाशन , नयी दिल्ली, सम्मान – साहित्यिक संस्था काव्य धारा , रामपुर , उत्तर प्रदेश द्वारा सारस्वत सम्मान, अखिल भारतीय हिन्दी विधि प्रतिष्ठान द्वारा द्वारा सारस्वत सम्मान, राष्ट्रीय स्वयम सेवक संघ द्वारा काव्य श्री आराधक मनीषी सम्मान, अखिल भारतीय अगीत परिषद , लखनऊ द्वारा दान बहादुर सिंह सम्मान, बाल प्रहरी , द्वाराहाट , अल्मोड़ा , उत्तराखन्ड द्वारा राष्ट्रीय बाल साहित्य सम्मान, गुंजन साहित्यिक मंच रामपुर , उत्तरप्रदेश द्वारा प्रशस्ति –पत्र, शिक्षा साहित्य कला विकास समिति,बहराइच,उत्तर प्रदेश द्वारा गजल श्री सम्मान, नवोदय विद्यालय समिति , नयी दिल्ली द्वारा गुरु श्रेष्ठ सम्मान, जनकवि बंशीधर शुक्ल स्मारक समिति , लखीमपुर , उत्तरप्रदेश द्वारा जनकवि बंशीधर शुक्ल सम्मान, प्रोग्राम सपोर्ट यूनिट फाउंडेशन द्वारा ग्रामीण विकास के क्षेत्र में सृजनात्मक योगदान हेतु प्रशस्ति –पत्र, अंजुमन फरोगे अदब , बहराइच उत्तर प्रदेश द्वारा स्व. श्याम प्रकाश अग्रवाल सम्मानपता - जवाहर नवोदय विद्यालयग्राम – घुघुलपुर , पोस्ट – देवरिया -२७१२०१जिला – बलरामपुर , उत्तर प्रदेशसंपर्क – मोबाइल – ०९५५९३०४१३१इमेल – yogishams@yahoo.comब्लॉग – dinesh-tripathi.blogspot.com
डा. दिनेश त्रिपाठी ‘शम्स’ की गज़लें
1
ख़ुशबुओं का हिसाब रखता है ,
वो जो नकली गुलाब रखता है .
उसका अहसास मर गया शायद ,
इसलिए वो किताब रखता है .
पूछता है जवाब औरों सॆ ,
पहले जो खुद जवाब रखता है .
साथ देता है सच का सिर्फ़ वही ,
दिल में जो इन्क़लाब रखता है .
‘शम्स’ रखता है आग सीने में ,
और आंखों में आब रखता है .
2
वक़्त के सांचे में अब तुम भी ढलो ऐ शम्स जी ,
छल रहे हैं जो तुम्हें उनको छलो ऐ शम्स जी .
सब अंधेरा बांटते हैं इस नगर में आजकल ,
चाहते हो रोशनी तो खुद जलो ऐ शम्स जी .
क्या नहीं होता इरादों में अगर हो जान तो ,
हौसलों की बांह थामें बढ़ चलो ऐ शम्स जी .
ये नदी है प्यार की लम्बी बहुत गहरी बहुत ,
डूब जाओगे न इसकी थाह लो ऐ शम्स जी .
आपके अशआर सुनकर कौन है जो दाद दे ,
गूंगे-बहरों की सभा से फूट लो ऐ शम्स जी .
3
वक़्त जब इम्तहान लेता है ,
हर हक़ीकत को जान लेता है .
तोल लेता है पहले पर अपने ,
तब परिन्दा उड़ान लेता है.
भूख भड़की तो जान ले लेगी ,
लोभ लेकिन ईमान लेता है .
फ़ैसला कर चुका है पहले ही ,
फिर भी मुन्सिफ़ बयान लेता है .
मैं उसे दोस्त कैसे कह दूं वो-
मेरी हर बात मान लेता है .
वो तमन्चे उठा नहीं सकता ,
हाथ में जो क़ुरान लेता है .
४
कभी इनका हुआ हूं मैं कभी उनका हुआ हूं मैं ,
खुद अपना हो नहीं पाया मगर सबका हुआ हूं मैं .
तुम्हारी आंधियां मुझको करेंगी दर-ब-दर लेकिन ,
वो तोड़ेंगी मुझे कैसे महज तिनका हुआ हूं मैं .
तुम्हारे तन-बदन की सन्दली खुशबू से मुझको क्या ,
अभी मिट्टी की सोंधी गन्ध से महका हुआ हूं मैं .
मैं मंज़िल तक पहुंच जाऊंगा ये उम्मीद है मुझको ,
न तो ठहरा हुआ हूं मैं न ही भटका हुआ हूं मैं .
मेरी हस्ती बहुत छोटी मेरा रुतबा नहीं कुछ भी ,
डूबते के लिए लेकिन सदा तिनका हुआ हूं मैं .
*****
५
पूछ मत मुझसे कि क्या कैसा हुआ
जो हुआ जैसा हुआ अच्छा हुआ
मै भरोसा ले गया बाजार में
मुझको हर व्यापार में घाटा हुआ
जाने कब लौटेगा अपनी राह पर
आदमी है देवता भट्का हुआ
भूल जाता हू मैं अपने गम सभी
देखता हू जब तुझॆ हंसता हुआ
मानता हू जीत मैं पाया नहीं
मत समझ लेकिन मुझे हारा हुआ
जो अलमबर्दार आजादी का है
खुद वही बन्धन में है जकडा हुआ
प्यार का सूरज न जाने कब उगे
नफ़रतों का हर तरफ़ कुहरा हुआ
9 comments:
आदरणीय नवनीत जी ,
उदाहरण में अपनी गज़लें देखकर प्रसन्नता हो रही है . आभारी हूँ आपका . उदाहरण के लिए अनंत शुभकामनायें . उदाहरण ब्लॉग जगत की महत्त्वपूर्ण पत्रिका सिद्ध हो इसी आशा के साथ
आपका
डा. दिनेश त्रिपाठी 'शम्स'
Nice sir.....
all gazal ki very very nice...
Respected Mr. Tripathi,
your all the poems are very nice and touching. It totally direct feelings from heart and suitable to every person. Its pleasure for being your student. thank you very much
Very nice poem sirjee,may every person try to understand and follow it to erase the boundries of hatredness between them.
sir gazal me to aapki maharat hai
padkar mujhe aisa laga
खुशबुओं का हिसाब रखता है /वह जो नक़ली गुलाब रखता है. क्या बात है ! गज़ल का एक-एक शेर शानदार है, इतनी सादगी के बावजूद, या कहिए इसी वजह से.
सहज ही मन में उतरती हैं ग़ज़लें .. सुन्दर और सरल..
बहुत अच्छी ग़ज़लें हैं शम्स साहब की, आधुनिक बोध लिए हुए, सरल सहज भाषा और शैली में। बधाई शम्स साहब को।
सभी ग़ज़लें शानदार है,मन को छूकर तरंगित करती हैं। बधाई 🙏🏽
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